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अनुराग शर्मा |
हिंदी आज भारतीय उपमहाद्वीप ही नहीं, बल्कि संसार की सबसे बड़ी मातृभाषाओं में से एक है। क्या आज यह उतनी शक्तिशाली है जितना इसे संख्याबल के आधार पर, या भारत जैसे विशाल लोकतंत्र की राजभाषा होने के कारण होना चाहिये? उच्च विज्ञान, गणित या तकनीकी प्रपत्रों, और शोधकार्यों के अंकन में, उच्च शिक्षा प्रदान करने में या अंतर्देशीय सम्वाद में, हिंदी अपने उचित स्थान से वंचित है। जहाँ एक ओर पेरिस, पोर्ट लुई, और पिट्सबर्ग में आपको हिंदी के सूचनापट्ट मिल जायेंगे, वहीं कुछ अराजक समूह भारत के भीतर ही हिंदी के चिन्हों पर कालिख पोत रहे हैं। दुःख की बात है कि कोई राजभाषा विभाग या हिंदी संस्थान इसके विरुद्ध विधिक कार्यवाही का दायित्व लेने की पहल नहीं करता। हिंदी के क्षेत्र में ऐसी नेतृत्वहीनता विचारणीय है। हम हिंदीभाषियों को विचार करना चाहिये कि हम हिंदी के लिये क्या कर सकते हैं।
हिंदी के महान साहित्यकार और छायावादी युग के एक स्तम्भ, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्म सन् 1896 में वसंत पंचमी के दिन हुआ था। ग्रेगोरियन पंचांग के अनुसार उसे प्रतिवर्ष 11 फ़रवरी के दिन मनाया जाता है। आइये, सेतु के इस अंक में निराला के व्यक्तित्व और उनके सामाजिक सरोकार से एक भेंट करने के साथ-साथ उनकी दो कविताओं का आनंद भी लेते हैं।
इस अंक के अनुवाद खण्ड में मराठी कवि आरती प्रभु की दो कविताओं के हिंदी तथा अंग्रेज़ी अनुवाद के साथ ही आपके रसास्वादन के लिये लता मंगेशकर के स्वर में मूल रचनाओं के ऑडियो के लिंक भी हैं।
यह अंक इस मायने में मील का एक पत्थर है कि इसके आगमन पर सेतु के ऑनलाइन हिट्स ने 3,00,000 का जादुई अंक पार कर लिया है। सेतु में विश्वास रखने के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद!
लघुकथा प्रतियोगिता के परिणामों के साथ आपसे फिर भेंट होगी, अगले अंक में ... तब तक आनंद लीजिये इस अंक का और हमें अवगत कराइये अपनी प्रतिक्रिया से।
होली के शुभ अवसर पर आपको हार्दिक बधाई और मंगलकामनायें! धन्यवाद!
शुभकामनाओं सहित,
आदरणीय संपादक महोदय,
ReplyDeleteनई और इच्छी जानकारी से भरपूर सेतु का ये अंक भी अच्छा लगा, आपको भी होली के शुभ अवसर पर हार्दिक बधाई और मंगलकामनायें
विधिक कार्यवाही का दायित्व लेने के लिए जिस आत्मबल और शुचिता की आवश्यकता होती है उसका अभाव है भारत में । यहाँ सारे काम मतदानकेंद्रित होते हैं, लोकतंत्र मतदानतंत्र में समाहित हो चुका है । हिंंदी भाषी क्षेत्रों की सरकारें भी जब योग को "योगा" लिखने लगें तो कार्यवाही का साहस कौन करेगा?
ReplyDeleteप्रिय महोदय,
ReplyDeleteसेतु के इस अंक के साथ तीन लाख हिट्स का आंकडा पार करने के लिये
बधाई स्वीकार करें. हिन्दी भाषियों की संख्या देखते हुए इसे तीन करोड होना होगा. आपने सही कहा कि हिन्दी अपने उचित स्थान से वंचित रही है. नेतृत्व हीनता का अभाव इसका एक कारण हो सकता है पर कई अन्य कारण भी
हो सकते है. कभी इस पर भी विचार किया जाना चाहिये.आज सेतु के माध्यम से एक कमी किसी हद तक दूर हुई है एक अच्छी पत्रिका के लिये कबसे हम सभी तरसते रहे और आज भी उस अभाव की पूर्ति सुदूर धरती पर बसे कुछ विचारशील ‘अपनों’ के माध्यम से हो सकी. सेतु जैसी पत्रिका को
वास्विकता के धरातल पर ला खडा करना आसान नहीं था और जिन्होंने इसकी परिकल्पना कर उसे
यथार्थ के धरातल पर ला खडा किया उन्हें ‘दृष्टा’ कहें तो अतिशयोक्ति न होगी. आशा है हम मिलजुल कर इस ऐतिहासिक अभियान को रुकने न देंगे.
शिखरों के पार नये
क्षितिजों के कुहरे में
खोए हैं असंख्य शिखर
अर्थों के हिमनग के.
-मुक्तिबोध
शुभकामनाओं सहित
चन्द्र मोहन भंडारी
हिन्दी को गति व बल प्रदान करते विचार । पाठक कोअवश्य लाभन्वित करेंगे। बधाई। शुभकामनाएँ ।मंगलमहोली .
ReplyDeleteहिन्दी को गति व बल प्रदान करते विचार पाठकों कोअवश्य लाभन्वित करेगें ।बधाई। शुभकामनाएँ ।मंगलमहोली .
ReplyDeleteहिन्दी को गति व बल प्रदान करते विचार पाठकों कोअवश्य लाभन्वित करेगें ।बधाई। शुभकामनाएँ ।मंगलमहोली .
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