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प्रियांकी मिश्रा |
- प्रियांकी मिश्रा
होती आई है
हर युग में अहल्या
तुम धन्य थी
जो मिले तुम्हें
मर्यादा पुरुषोत्तम
दशरथ नन्दन
तार दिया
नवजीवन देकर
अपने चरण-स्पर्श से
पाषाण हो चुकीं
समस्त अभिलाषाएँ
मूक,निःस्पन्दन,
नहीं आएँगे
कोई राम
करने उद्धार
अपने संदीपन से
अनुनय-विनय भी
अधूरी अनकही
अनसुनी अब
न होगा प्रेरण
किसी देव का
जो त्राण दें
अपनी उष्मा से
बेधना होगा तुम्हें
स्वयं ये प्रस्तर
रचना होगा
नया अवतार
फूंकने होंगे
नूतन प्राण
अपने आत्म-बल से
लेनी होगी
शिक्षा केवट से
ढ़ृढ़ हठ की
झुक ही जाएँगे
खुद प्रभु
देने आशीष
अपने उर-अंतर से
होती ही रहेगी
हर युग में अहल्या
दंभ कर सकेगी
जो निज शक्ति पर
गरिमामय
शिला भंजक
अपने दिव्य स्वरूप से।
Great
ReplyDeleteNari sashaktikaran ka atyant upyukt prabhavshali satik niroopan
ReplyDeleteमैंनें सुना था कि जब ज़मीर खौलता है तो कलम बोलता है।
ReplyDeleteऔर आपकी इन चंद पँक्तियों को पढ़कर आज इस कथन के सत्य होने का एक और प्रमाण मिल गया।
धन्यवाद आज के इस आधुनिक युग में भी आप हमारी भारतीयता को आगे ले जा रही है।
सचमुच हृदयस्पर्शी😊😊
मैंनें सुना था कि जब ज़मीर खौलता है तो कलम बोलता है।
ReplyDeleteऔर आपकी इन चंद पँक्तियों को पढ़कर आज इस कथन के सत्य होने का एक और प्रमाण मिल गया।
धन्यवाद आज के इस आधुनिक युग में भी आप हमारी भारतीयता को आगे ले जा रही है।
सचमुच हृदयस्पर्शी😊😊