समीक्षा: राधेश्याम भारतीय
देश-विदेश से कथाएँ
सम्पादक: अशोक भाटिया
प्रकाशक: साहित्य उपक्रम
प्रकाशन वर्ष: जनवरी, 2017
पृष्ठ: 135
मूल्य: ₹ 80
देश-विदेश की सशक्त लघुकथाओं का संचयन: देश-विदेश से कथाएँ
लघुकथा विधा को पल्लवित-पुष्पित करने में जिन लघुकथाकारों का विशेष योगदान रहा है, उनमें डॉ अशोक भाटिया का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जा सकता है। अब तक इनकी 12 मौलिक और 15 सम्पादित पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनके दोनों लघुकथा संग्रह ‘जंगल में आदमी’ और ‘अंधेरे में आँख’ का तमिल व मराठी में अनुवाद हो चुका है। इसके साथ लघुकथा विधा की रचना प्रक्रिया पर भी इनकी आलोचनात्मक पुस्तक ‘समकालीन हिदी लघुकथा’ प्रकाशित हो चुकी है। वह पुस्तक खूब चर्चा में रही। अब तो डॉ. भाटिया लघुकथा के पर्याय से बन गए हैं। ‘पंजाब से लघुकथाएँ’, व ‘हरियाणा से लघुकथाएँ’ पुस्तकों का सम्पादन करने के बाद अब इनकी नजर विदेशों की ओर गई। इन्होंने देश-विदेश की 18 भाषाओं से 66 लेखकों की 88 लघुकथाएँ पाठकों को सौंप दी। इन लघुकथाओं के बारे में भाटिया जी का मानना है - विश्व के विभिन्न लेखकों की रचनाओं को आमने-सामने रखने से हर जगह के मनुष्य की सोच, उनके दुख-सुख व चिन्ताओें-सरोकारों में आश्चर्यजनक समानता उभरकर सामने आती है। दुनिया की कोई भी भाषा या संस्कृति सीमाओं में नहीं बंध सकती। बहते जल को भला कौन बांध सकता है?
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अशोक भाटिया |
राधेश्याम भारतीय |
हरिशंकर परसाई की रचनाएँ व्यंग्य की तेज धार लिए होती हैं। ऐसी ही धार लघुकथा ‘अनुशासन’ में देखी जा सकती है। चित्रा मुद्गल की लघुकथा ‘बयान’ में जो माँ के बयान है ऐसी परिस्थितियों में हर बेबस माँ के यही बयान होंगे। आर्थिक हालातों से जूझते एक प्राणी का कारूणिक चित्रण इससे बेहतर और क्या हो सकता है -‘‘नाल पर अब कौन खर्च करता है माँ! हण्टरों और चाबुकों के बल पर अब तो मालिक लोग बिना नाल ठोंके ही घोड़ों को घिसे जा रहे हैं ...’’ यह कहते हुए अपने दोनों पैर चादर से निकालकर उसने माँ के आगे फैला दिए, ‘‘लो, देख लो।’’ बलराम अग्रवाल की लघुकथा ‘बिन नाल का घोड़ा’ का अन्तिम वाक्य मानव को चिंता और चिंतन को बाध्य कर देता है। अशोक भाटिया की लघुकथा ‘कपों की कहानी’ दलित चेतना की सशक्त़ लघुकथा है जो मनुष्य का मनोविश्लेषण बहुत अच्छे से करती है। सवर्ण दलितों के प्रति कितनी ही हमदर्द जताये पर उसके जेहन में भेदभाव की दीवार मजबूती के डटी रहती है। बच्चे पत्थर को मोम बनाने की ताकत रखते हैं इस बात का अहसास कमल चोपड़ा की लघुकथा ‘प्लान’ में से समझा जा सकता है। रामकुमार आत्रेय की लघुकथा ‘बिन शीशों का चश्मा’ में पाया कि देश में आदर्श किस तरह खोखले साबित हो रहे है कि महान पुरुषों की जयन्ती पर उनकी तस्वीर ढूंढकर उनपर पुष्प चढ़ाए जाते हैं। युगल की लघुकथा ‘पेट का कछुआ’ पाठक पर लम्बे समय तक अपना असर डालने वाली लघुकथा साबित होती है। पाश्चात्य संस्कृति कैसे भारतीय संस्कृति को अपनी गिरफ्त में फंसाती जा रही है। यह सुकेश साहनी की लघुकथा ‘कसौटी’ पढ़ने पर पता चलता है। प्रेम की मीठी तान सुनाती और उस मीठी तान में कैसे मनुष्य सब कुछ भूल जाता है इसकी एक मिसाल पंजाबी के लघुकथाकार श्यामसुन्दर दीप्ति की लघुकथा ‘हद’ में देखी जा सकती है। जसवंत सिंह बिरदी की लघुकथा ‘भगवान का घर’ भगवान के असली रूप के दर्शन करवाती है। अनमोल झा की लघुकथा ‘बेटा-बेटी’ पढ़कर लगता है कि बेटा-बेटी में भेद करने पर यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है।
अन्त में इतना ही कहा जा सकता है कि ये बेहद खूबसूरत कथाएँ आपको साहित्य का पाठक बनाने की ताकत रखती हैं। विश्व भर के चुनिन्दा लेखकों की ये लघुकथाएँ आपको सुखद आश्चर्य में डाल देंगी। ये लघुकथाएँ आपके दिलों पर राज करने की क्षमता रखती हैं।