राजीव दैपुरिया |
उसके पास माँ के इस सवाल का जबाव नहीं होता था कि वह घर कब आएगा? जब उसने कहा कि माँ होली पर नहीं आ सकता। तो वह बच्चों की तरह सवाल करते हुए पूछने लगी, "क्यों?"
"माँ काम बहुत है छुट्टी नहीं मिलेगी।"
"फिर कब मिलेगी?"
"जुलाई में ..."
"जुलाई में तो पाँच महीने हैं!" यह कहती हुई माँ की आवाज का भारीपन उससे सहा नहीं गया।
मन बदलते हुए उसने सोचा कि चला ही जाता हूँ। कल ही मैनेजर से बात करके छुट्टी लेकर होली पर घर चला जायेगा। पर उसने ये बात अभी माँ को नहीं बताई क्योंकि अभी तो यह भी पता नहीं था कि छुट्टी स्वीकार होगी भी या नहीं।
घर पर होता था तो उसे कभी छोटे-छोटे कामों के लिए बोलना नहीं पड़ता था। सारे काम जैसे खुद-ब-खुद हो जाते हों। यह बात उसे अब अनुभव होती थी जब उसके छोटे-छोटे काम महीने भर तक नहीं होते। उसके पैन्ट का आगे का बटन निकल गया था। महीना भर हो चुका था वो उसे सही नहीं करवा सका। आज उसके मन में आया कि लेकर ही जाता है और उसे सही करवा कर ही आएगा। एक बटन ही तो लगना था।
जिस पहली दुकान पर वह पहुँचा वहाँ उसने पैन्ट पटकते हुए टेलर से बोला, "बटन लगना है!"
टेलर ने एक नजर से उसे देखा और बोला, "पचास रुपये।" उसने कहा देख तो लीजिए कहाँ लगना है फिर पैसे बताना। टेलर ने देखा और बोला, "हो जाएगा।" अब उसने फिर पूछा, "पैसे कितने?"
टेलर ने दोहराया, "पचास रुपये!"
"अरे! एक बटन स्टिच करने का पचास रुपये। ठीक-ठीक बताओ कितना?"
"भइया उतना ही जितना बोला, नहीं तो कहीं और ले जाओ।"
इतना सुनकर उसने पैन्ट उठाई और आगे चल दिया। थोड़ा आगे चलने पर उसे एक साधारण सी दुकान दिखी। वह अन्दर गया तो देखा कि एक महिला कपड़े सिल रही थी। सामने उसकी 13-14 साल की बेटी बैठकर अपनी माँ को काम करते हुए देख रही थी।
उसने उस महिला की तरफ पैन्ट बढ़ाते हुए पूछा, "क्या इसमें बटन लग सकता है?" महिला ने उसे देखकर पैन्ट उसके हाथ से ली। उसने उस महिला से पूछा कि कितने पैसे हो जायेंगे इसके? महिला ने मुस्कुराकर पैन्ट अपनी बेटी को दे दिया और बोली इसमें बटन लगाओ। उसने उस महिला से दोबारा पूछ लिया पर इस बार वह न सिर्फ मुस्कुराई बल्कि कुछ कह कर चली गई जो उसे बिल्कुल भी समझ नहीं आया। वह महिला कन्नड़ में कुछ बोल रही थी।
वह औरत थोड़ी देर में वापस आई और उसे खड़ा देखकर बैठ जाने का आग्रह किया। वह बैठा-बैठा सुई, धागा, और उस बच्ची को बटन लगाते देखता रहा। कहीं से उसे अपनी छोटी बहन की एक झलक सी दिखी।
बटन लग चुका था। उस बच्ची ने कहा, "भइया पैन्ट!" उसने पैन्ट लेते हुए बच्ची को पचास रुपये थमाए जो उसने अपनी माँ की तरफ बड़ा दिए। वह औरत खड़ी हो गई और पैसे लेने से मना करने लगी। उसने उस औरत से मुस्कुराकर इशारे से कहा कि बच्ची को दे दीजिए उसके लिए हैं। पर वह नहीं मानी और बोली, “टेन रूपीज़ ओनली!” (मात्र दस रुपये)
उसने वह नोट उनके हाथ से लिया और उस बच्ची को थमाकर धन्यवाद कह कर दुकान से बाहर आ गया। रास्ते भर वह मुस्कुराता ही रहा। पता नहीं इतनी सी बात पर उसे इतना सुकून कहाँ से आ रहा था!
Great story Rajeev. Keep it up!
ReplyDeleteदम है , बहुत बढ़िया
ReplyDeletebhaiya
ReplyDeletevery very very nice story
and all the best for ur future
बहुत अच्छा लिखा है भाई।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया राजीव
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