हम जब
सोचते हैं कि रात खामोश है
रात दयालु है
बर्फ पर फिसले नक्षत्रों को वह
पेडों के बालों पर सजाती है
वह दिन के कॉलर पर बटन चढाती है
सुबह थका हुआ दिखता है
उसको मालूम है किसने सांस छोड़ा
चंदन और कहरूबा का वास्तविक गंध
रात को
सब वहीं विश्वास करते हैं
जो अनुमान लगाया गया था
यदि मैं तुझे प्यार करती हूँ
तो लोग हलचल मचाऐंगे
खतरा
मुनि तलवार की धार से
जीभ को परखता है
दूरी
जो दूसरों के दर्द को
पहचान सकता है
सब उसी से ढके हैं
दिल का दौरा
हमें पता चला
किे हर प्यार भूतकाल की पीड़ा का आराम है
राख हमेशा तुम्हारे चेहरे से मजबूत है
हिलाल कराहन
तुर्की कवयित्री. 3 कविता संग्रह और 2 गद्य
संग्रह प्रकाशित. कविताओं का स्पेनी और अन्य भाषाओं में अनुवाद हुए हैं। बुरहान
गुनेल पुरस्कार प्राप्त। संपर्क-
hilalkarahan108@gmail.com
संतोष अलेक्स
द्विभाषी कवि एवं
बहुभाषी अनुवादक। 24 किताबें प्रकाशित जिनमें कविता, आलोचना एवं अनुवाद शामिल। कविताओं का अनुवाद 18 भाषाओं में हुआ है। द्वीवागीश पुरस्कार (राष्ट्रीय अनुवाद
पुरस्कार) तलशेरी राघवन स्मृति कविता पुरस्कार, प्रथम सृजनलोक कविता पुरस्कार
और साहित्य रत्न पुरस्कार से सम्मानित। संपर्क – drsantoshalex@gmail.com